भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अगस्त 2025 की Monetary Policy बैठक में Repo Rate को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर बनाए रखने का निर्णय लिया है। इसका मतलब है कि होम लोन, कार लोन या अन्य लोन की ईएमआई में फिलहाल कोई राहत नहीं मिलेगी। यह लगातार चौथी बार है जब रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया।
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को अल्पकालिक कर्ज देता है। जब रेपो रेट घटती है, तो बैंक भी अपने ग्राहकों को सस्ते दरों पर लोन देते हैं, जिससे आम लोगों की ईएमआई कम होती है। लेकिन रेपो रेट में स्थिरता का मतलब है कि बैंकिंग सेक्टर में तत्काल कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखेगा।
आरबीआई ने अपने नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ बनाए रखा है, यानी वो स्थिति के अनुसार भविष्य में दरों में बदलाव कर सकता है। महंगाई पर बात करते हुए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बताया कि कोर मुद्रास्फीति 4% के आस-पास स्थिर है, और वित्त वर्ष 2025-26 में खुदरा महंगाई (CPI) 3.1% रहने का अनुमान है
जबकि अगले साल यह बढ़कर 4.9% हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में खपत कमजोर दिख रही है। जीडीपी ग्रोथ को लेकर आरबीआई ने अनुमान जताया है कि चालू वित्त वर्ष में देश की वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर 6.5% रहेगी, और अगले वर्ष यह बढ़कर 6.6% हो सकती है। तिमाही दरों में यह क्रमशः 6.5%, 6.7%, 6.6% और 6.3% रहने की उम्मीद है।
बैंकिंग सेक्टर की बात करें तो शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों की स्थिति मजबूत बनी हुई है। उनका पूंजी पर्याप्तता अनुपात 17% से ऊपर है, ग्रॉस एनपीए 2.2% है और नेट इंटरेस्ट मार्जिन 3.5% है। क्रेडिट-डिपॉजिट रेशियो 78.9% दर्ज किया गया है। साथ ही आरबीआई ने यह भी कहा कि पिछले कुछ महीनों में सिस्टम में तरलता यानी लिक्विडिटी की स्थिति बेहतर हुई है
और हाल ही में की गई सीआरआर में कटौती से इसमें और सुधार होगा। कुल मिलाकर, इस नीति के जरिए आरबीआई ने स्थिरता और संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है ताकि महंगाई पर नियंत्रण रखते हुए आर्थिक विकास को समर्थन दिया जा सके।
RBI महंगाई को लेकर आरबीआई का रुख
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अगस्त 2025 की मौद्रिक नीति बैठक में कई अहम घोषणाएं कीं। सबसे बड़ी बात यह रही कि रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया और इसे 5.5% पर स्थिर रखा गया। इसका मतलब है कि आम लोगों की EMI में कोई राहत नहीं मिलेगी।
महंगाई के मोर्चे पर राहत की बात यह रही कि कोर मुद्रास्फीति दर लगभग 4% पर स्थिर बनी हुई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 के लिए खुदरा महंगाई दर 3.1% और अगले वर्ष 4.9% रहने का अनुमान है। GDP ग्रोथ की बात करें तो RBI ने चालू वर्ष के लिए 6.5% और अगले वित्त वर्ष के लिए 6.6% ग्रोथ का अनुमान जताया है।
बैंकिंग सेक्टर की स्थिति भी मजबूत दिखी, जहां पूंजी पर्याप्तता अनुपात 17% से ऊपर और ग्रॉस एनपीए 2.2% पर रहा। साथ ही, RBI ने यह भी बताया कि सिस्टम में पर्याप्त लिक्विडिटी बनी हुई है, जिससे वित्तीय बाजार में स्थिरता बनी रह सकती है। मर्चेंडाइज ट्रेड डेफिसिट में थोड़ी बढ़ोतरी जरूर हुई है, लेकिन कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं।
बैठक में यह भी स्पष्ट हुआ कि RBI फिलहाल ‘तटस्थ’ नीति रुख अपनाए हुए है, जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि निकट भविष्य में ब्याज दरों में कोई बड़ा बदलाव संभव नहीं है। इस बैठक से यह स्पष्ट होता है कि RBI अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने और महंगाई को नियंत्रण में रखने की दिशा में संतुलित और सतर्क नीति अपना रहा है
क्या होता है CRR?
CRR यानी कैश रिजर्व रेशियो (Cash Reserve Ratio) एक ऐसा नियम है, जिसके तहत सभी बैंक अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास अनिवार्य रूप से जमा करते हैं। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि जब हम बैंक में पैसा जमा करते हैं
तो बैंक उस पैसे को लोन देने या निवेश करने में इस्तेमाल करता है। लेकिन RBI यह सुनिश्चित करता है कि बैंक पूरा पैसा न चलाए, बल्कि उसका एक हिस्सा अपने पास जमा कराए। यह राशि एक प्रकार की सुरक्षा के तौर पर काम करती है, ताकि बैंकिंग सिस्टम में स्थिरता बनी रहे और आर्थिक संकट की स्थिति में ग्राहकों का पैसा सुरक्षित रहे।
उदाहरण के तौर पर, अगर CRR 4% है और किसी बैंक के पास 100 करोड़ रुपये की जमा राशि है, तो उसे 4 करोड़ रुपये RBI के पास जमा कराने होंगे। यह पैसा बैंक न तो लोन के रूप में दे सकता है और न ही इस पर उसे कोई ब्याज मिलता है।
CRR का मुख्य उद्देश्य मौद्रिक नियंत्रण और वित्तीय स्थिरता बनाए रखना है। जब बाजार में बहुत ज्यादा नकदी होती है और महंगाई बढ़ने का खतरा होता है, तब RBI CRR बढ़ा सकता है।
इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम पैसा बचेगा और बाजार में पैसों की उपलब्धता घटेगी, जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सकता है। दूसरी ओर, जब अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने की जरूरत होती है, तब CRR घटाया जा सकता है, जिससे बैंकों के पास ज्यादा नकदी उपलब्ध होगी और वे लोन देने में सक्षम होंगे।
इस तरह CRR एक महत्वपूर्ण टूल है जिसे RBI देश की आर्थिक स्थिति को संतुलित रखने के लिए उपयोग करता है।
CRR में बदलाव क्यों किया जाता है?
CRR यानी कैश रिजर्व रेशियो वह हिस्सा होता है जो हर बैंक को अपनी कुल जमा राशि में से रिज़र्व बैंक (RBI) के पास रखना होता है। जब RBI इस CRR में बदलाव करता है, तो इसका सीधा असर बैंकों और आम लोगों पर पड़ता है।अगर RBI CRR बढ़ा देता है, तो बैंकों को ज्यादा पैसा RBI के पास जमा करना पड़ता है।
इसका मतलब है कि अब बैंकों के पास लोन देने के लिए कम पैसा बचता है। जब लोन देना मुश्किल होता है, तो ब्याज दरें बढ़ सकती हैं और EMI भी महंगी हो जाती है। इससे बाजार में पैसा कम हो जाता है और महंगाई पर थोड़ा कंट्रोल किया जा सकता है।
वहीं अगर RBI CRR घटा देता है, तो बैंकों को कम पैसा जमा करना होता है और उनके पास ज्यादा फंड बचता है। ऐसे में बैंक ज्यादा आसानी से लोन देते हैं, ब्याज दरें कम हो सकती हैं और लोगों की EMI भी कम हो सकती है। इससे लोगों को सस्ता लोन मिलता है और बाजार में पैसा घूमने लगता है, जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलती है।
सीधे शब्दों में कहें तो: CRR बढ़ने पर: बाजार में पैसा कम, लोन महंगा, महंगाई कम करने में मदद। CRR घटने पर: बाजार में पैसा ज्यादा, लोन सस्ता, आर्थिक ग्रोथ को बढ़ावा। RBI जरूरत के हिसाब से CRR को घटाता-बढ़ाता रहता है ताकि देश की अर्थव्यवस्था संतुलित बनी रहे।
महंगाई पर कंट्रोल के लिए RBI क्या सोचता है?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का मानना है कि महंगाई यानी चीज़ों के दाम बढ़ना, देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है। अगर महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ती है, तो इसका असर सीधे आम आदमी की जेब पर पड़ता है – जैसे खाने-पीने की चीज़ें, दवाइयाँ या जरूरी सामान महंगे हो जाते हैं।
RBI की मौजूदा रिपोर्ट के मुताबिक:
- खाने-पीने की चीज़ों को छोड़कर बाकी सामानों की कीमतें लगभग स्थिर हैं।
- आने वाले महीनों में महंगाई 3% से 5% के बीच रह सकती है – जो RBI के लिए संतोषजनक मानी जाती है।
RBI क्या कर रहा है?
RBI ब्याज दरों (जैसे रेपो रेट) को ऐसा बनाए रख रहा है जिससे महंगाई पर कंट्रोल बना रहे और लोगों को लोन भी आसानी से मिले। RBI का रुख फिलहाल तटस्थ (Neutral) है, यानी वह न तो ब्याज दरें बढ़ा रहा है और न ही घटा रहा है। वह देख रहा है कि हालात कैसे रहते हैं।
अगर महंगाई बढ़ती है, तो RBI ब्याज दरें बढ़ाकर बाजार में पैसों की सप्लाई कम कर सकता है। अगर महंगाई कम रहती है, तो RBI दरें घटाकर लोगों को खर्च और निवेश करने के लिए बढ़ावा देगा।
आम आदमी के लिए RBI पॉलिसी के मायने
RBI की मौद्रिक नीति (Monetary Policy) का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है। जब RBI रेपो रेट में बदलाव करता है, तो उसका असर बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन और उस पर लगने वाली EMI पर होता है। अगर RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंक लोन सस्ता कर सकते हैं, जिससे होम लोन, कार लोन या पर्सनल लोन की EMI कम हो जाती है।
इससे आम लोगों को राहत मिलती है। वहीं, रेपो रेट बढ़ने पर लोन महंगे हो जाते हैं और EMI बढ़ जाती है, जिससे मासिक बजट पर बोझ बढ़ता है। इसके अलावा, RBI की नीति महंगाई को काबू में रखने के लिए भी बनाई जाती है।
जब महंगाई बहुत बढ़ जाती है, तो RBI रेपो रेट बढ़ाकर बाजार में पैसे की आपूर्ति कम करता है, जिससे चीज़ों के दाम नियंत्रित हो सकते हैं। इससे आम आदमी को रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहने का लाभ मिल सकता है। ब्याज दरों का असर आपकी सेविंग्स पर भी होता है।
अगर RBI दरें बढ़ाता है, तो फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) और सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाला ब्याज भी बढ़ सकता है, जिससे बुजुर्ग और बचत करने वाले लोगों को फायदा होता है।
संक्षेप में, RBI की पॉलिसी यह तय करती है कि आपकी EMI कितनी होगी, महंगाई कैसे रहेगी, और आपकी सेविंग्स पर कितना ब्याज मिलेगा। इसलिए आम आदमी के लिए यह नीतियां बहुत महत्वपूर्ण हैं और इन पर नजर रखना ज़रूरी होता है।
जानिए RBI की नीति से जुड़े सबसे जरूरी सवालों के जवाब
Q1: RBI की मौद्रिक नीति क्या है?
Ans: यह वो योजना है जिसके ज़रिए RBI यह तय करता है कि बाजार में कितना पैसा होना चाहिए, लोन पर ब्याज कितना होना चाहिए और महंगाई पर कैसे काबू पाना है।
Q2: रेपो रेट क्या होता है? Ans: यह वह ब्याज दर है जिस पर बैंक RBI से पैसा उधार लेते हैं। अगर यह दर घटती है तो लोन सस्ता होता है, और बढ़ती है तो लोन महंगा होता है।
Q3: CRR क्या होता है?
Ans: यह बैंक की जमा राशि का वो हिस्सा है जो बैंक को RBI के पास रखना होता है। इससे यह तय होता है कि बाजार में कितना पैसा घूमेगा।
Q4: आम आदमी को इससे क्या फर्क पड़ता है?
Ans: EMI बढ़ या घट सकती है लोन लेना आसान या मुश्किल हो सकता है बचत पर ब्याज कम या ज़्यादा मिल सकता है रोजमर्रा की चीज़ों के दाम प्रभावित हो सकते हैं
Q5: जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है तो क्या होता है?
Ans: बैंक से लोन लेना महंगा हो जाता है, EMI बढ़ जाती है, और लोग कम खर्च करते हैं। इससे महंगाई कम हो सकती है।
Q6: अगर रेपो रेट घटे तो?
Ans: बैंक सस्ते लोन देने लगते हैं, EMI कम होती है, लोग ज़्यादा खर्च करते हैं और बाजार में रौनक बढ़ती है।
Q7: ये पॉलिसी कितनी बार आती है?
Ans: RBI हर दो महीने में एक बार बैठक करता है यानी साल में 6 बार यह नीति जारी की जाती है।